बिखरता भारत



बिखर रहा भारत का वैभव
लोग लगे हैं बिखराने में।
पता नहीं कब निखरेगी
गौरव देश की चौराहों में।

था एक दिन जमाना ऐसा
सोने की चिड़ियाँ कहलाती थी
मुग़लों ने लूटा ही लूटा
अंग्रेज कहाँ रहा इससे अछूता।

शिक्षा का तो किया पतन था
विदेशों में गिरा मान मर्दन था।
भाई ने भाई को कटा
भारत को पाकिस्तान में वांटा।

जैसे रजनी में शशि शोभता
निशा में कितने का मन मोहता।
भारत भी था शशि समान
विश्व में अनुपम महान।

ऋषि मोनियों ने गाई गौरव गाथा
भारतीय बने हुए हैं इसका व्याधा।
कोई कहता पंजाब हमारा कोई आसाम
हम सब क्यों न कहते हम हैं भारत की संतान

बढ़ रही बेरोजगारी ,बन रहे उग्रवादी
छोटे छोटे रूप से बड़ी समस्या विकराल बनी।
भाई भाई का मरण हमारा
मस्ती लेता विदेश बेचारा।

धन जान की क्षति   होती हमारी
 तूझे सूझता नहीं भारतीय नर नारी
प्रान्त में होता घोटाला ,केंद्र में होता हवाला
जनता में मचती ववाल ,समझाने आते नेता लाल।

चोर लुटेरे यहाँ पड़े हैं ,
जनता के बीच कैसे खड़े है
जनता उनकी वैसी सजा दे
संख्यां उनकी न बढे।

कोई कहता पंजाब हमारा ,
कोई कहता आसाम
कोई कहता उत्तराखंड हमारा
कोई कहता झारखण्ड।

शहीदों ने ले ली आजादी
 दे कर अपनी जान
इन्होने बढ़ाया
विश्व में भारत का मान।

आजादी की कीमत मंहगी थी
शहीदों ने ख़रीदा था देकरखून
लटक गए फांसी के फंदे
भारत मां केप्यारे बन्दे।

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
सबने मिलकर लड़ी लड़ाई
उन्होंने यह न सोचा होगा
मेरा भारत बिखंडित होगा।

सभाष भगत की शहीद भूमि है
 बुद्ध ,महावीर गाँधी की तपोधरा
गुप्त दिनकर पंत का यहाँ न होगा अंत
चाहे गुजर जाये कितने वसंत।

कभी न मानी उनकी अधीनता
खाये वन में घांस की रोटी
चढ़े रहे पर्वत की चोटी
चाहे कट जाये तन की बोटी बोटी।

राजा पुरु की पौरुष को देखो
इनसे टकराया यूनानी
लड़ते  लड़ते बंदी बनगए
फिरभी हार कभी न मानी

मंदिर टूटा, मस्जीद टूटा।
टूट रहा इंसान, टूट रहा इंसान,
भगवन तू क्यों खड़ा खामोश।
दो इन मूर्खों को होश।

सुरा पान कर , सुंदरी खोजे। 
सज्जन बन, करके दुर्जन।।
माँ बहनों की, इज्जत जाती।
वाणी वादिनी क्यों चुप्पी साधी।।

आज कुकर्मी बने हुए हम.
सारे कुकर्मो का मुझमे समावेश 
कहीं होती सीता, जैसी कन्या हरण।
कहीं होता द्रोपदी का चीर हरण

कहीं होता आमरण अनशन।
कहीं होता कन्या का जलन।
 जब होता वर - वधू का मिलन। 
दहेज़ न मिला तो वधु का जलन।।

महानगरों में होती, बमबाजी।
कहीं ट्रैन, उड़ाई जाती।।
कहीं गाँव, जलाये जाते।
कहीं मानव, दानव बन जाते।।

देखों कृषकों का हाल।
भुखमरी से, कैसे बेहाल।।
बच्चे मांगे रोटी दाल।
ग्रस लेते, उनको काल।

कब होगा ऐसे कुकर्मो का अंत। 
समाज मे बढ़ेगा, जब साधू संत।।
जब तक बढ़ेगा, समाज मे चोर।
कुकर्मो का होगा, सर्व्रत घनघोर।।


Written when India's Condition was not good. 

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