पर्यावरण


ईश्वर ने जो कुछ रचा धरा पर
मानव हेतू उपहार।
मानव इनसे करे सदव्यवहार
हो सम्पूर्ण मानव का उपकार

वन कटेंगें वन प्राणी घटेंगें
होंगें घटा से कितनी दूर।
बारिश घटेगी भुखमरी बढ़ेगी
होगा जन का ह्रास न समझे बकवास।

जो हमें अन्न जल वायु देता
उसे लुप्त कर मानव आयु खोता
होगा अस्त व्यस्त समस्त पारितंत्र
धरा से होगा जीवों का अंत।

जब मानव धरती पर आया
सकल था इसका बंदर।
जीवन जीता था घुम्मकड़
मानव सभ्यता के अंदर।

वन नहीं तो जलनहीं
जल नहीं तो जीव नहीं
जीव नहीं तो धरा नहीं
धरा नहीं तो कोई नहीं।

अगर जगत में जीवन जीना चाहते हो
तो अपना लो प्रेम की राहें
वन उपवन से रखना वास्ता
बन सकता तेरी जिंदगी की दस्ता।
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