इंदु


मेरी प्यारी इंदु
खुशियों का चरम बिंदु।
तूझे मानू गंगा या सिंधू
ओ मेरी प्यारी इंदु।

मैंने खाई है कस्में
निभा के सारी रश्में
जुदा न होंगें खुदा कीकसम
मैं तो था आशिक आवारा
न पढता न लिखता
पर था कुंवारा
खुदा की हुई मुझपे ऐसी माया
इंदु के साथ मेरा व्याह रचाया।
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