तलाश मंजिल की



कोई नहीं है तुझसा यार
दुनिया में  सुन्दरतम शख्स
हर जुल्म जमाने का सहता चल
अपनी चौड़ी करके वक्ष
कदम दर कदम बढ़ता चल
मंजिल मिल मिल ही जाएगी
न देख दाएँ न देख बाएँ
आगे ही आगे बढ़ता चल
स्व पौरुष से अपना पंथ
स्वयं गढ़ता चल, गढ़ता चल
धरती उठेगी अम्बर झुकेगा
चारों दिशाए देंगी दुआ
अगर तू मंज़िल पाने में
आपने परिपथ पर सफल हुआ
मत होना तू डगमग पथ पर
दुनिया बड़ी जालिम है।
धिक्कारेगी तुम्हें कायर कहकर
उपालंभ देगी रह रह कर
अगर कामों में हुआ असफल
सहर्ष उसे वरण कर
उसपर अध्यन गहन कर
 लगा रह तू काम में तब तक
सफल न होवें जब तक
कोई नहीं है तुझ सा यारा
दुनियां में  सुंदरतम शख्स
हर जुल्म जमाने का सहता चल

 अपनी चौड़ी करके वक्ष
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