फूल


ऐ  फूल
तुमसंग की
हवा ने भूल
उखाड़ फेंका
तुम्हारा मूल।

बर्बाद हो गया
तुम्हारा कुल।
तुम्हें बर्बादी का गम नहीं ,
गिरना ,हसना ,उठना
कोई तुमसे सीखे।
कांटों के बीच
तुम रहते हो खिले
हवा ने ज्योही तुम्हें
मिट्टीके गर्त मे गिराया
बारिश ने तुम्हें
धूप का साथ लेकर
पादप बन उगाया
समयांतराल में
ज्योंहि तुम नभ मे छाये
तुम्हारे फूल को संतों ने
तोड़ मंदिर मे चढ़ाये
तुम्हें प्रेमिका बना माला
प्रेमी के गले डाला
भ्रमर ने तुम्हारा मकरंद को चुराया
फिर भी तुम प्रतिकार न कर पाये
कवि ने कविता मे
लोगों को समझाया
अरे किसी को तोड़ने फेंकना
ये कोई मानवता है
नहीं ये तो घेरा दानवता है
दुनिया मे जीने का हक
सब का सामान है
समादर करना जिसने सीखा
वही तो महान है।
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