मनुष्य की मनुष्यता


चली जा रही ,
बड़ी दूर तेजी से
 मनुष्य की मनुष्यता
सोचता है अंतर मन में ,
कालजयी बन ,
कहलाऊँ विश्व विजेता।
चली जा रही
बड़ी दूर तेजी से
मनुष्य की मनुष्यता
निज निज मन में ,
अंतर्भेद है ,
पनप रही अश्पृश्यता।
चली जा रही बड़ी दूर तेजी से ,
मनुष्य की मनुष्यता।
निज स्वार्थ हेतू मनुज सामने ,
खड़ी जाती गत विभिन्नता।
चली जा रही बड़ी दूर ,
तेजी से मनुष्य की मनुष्यता।
टूट रहा हर दिल ,
बिखर रही मनुष्यता ,
जा बैठी कोने में मानवता।
चली जा रही बड़ी दूर तेजी से,
 ,मनुष्य की मनुष्यता
पनप रही है हर के उर में ,
द्वेषपूर्ण वैमनष्यता।
कुंठित बन बैठी औपचारिकता।
चली जा रही बड़ी दूर तेजी से ,
मनुष्य की मनुष्यता।
धनहीन को घटिया समझ ,
धनवान को देता वरीयता।
चली जा रही बड़ी दूर तेजी से ,
मनुष्य की मनुष्यता।
 निर्विघ्न व् निडर हो,
,कर रहा निरंतर,
मानवता से दूर हट क्रूरता।
चली जा रही बड़ी दूर तेजी से
 मनुष्य की मनुष्यता
हर कुकर्म को कर रहा मन ,
पाने को श्रेष्ठता
चली जा रही बड़ी दूर तेजी से ,
मनुष्य की मनुष्यता।

विनाश का किनारा समीप
,घर में बैठे भेदिया
ख़त्म हो चुकी व्यवहारिकता।
चली जा रही बड़ी दूर तेजी से ,
मनुष्य कीमनुष्यता।
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