नारी व्यथा


नारी व्यथा की मंजूषा
बच्चों को करती सुश्रुषा।
उषा का ल में उठ कर
करती रहती निरंतर काम ,
जब तक न हो जाती शाम
लेना चाहती हरी का नाम ,
जीवन में कहाँ उसे विश्राम
कामों में रहती हैरान।
 हर व्यथा को सह लेती।।
वनवास मिले जो गह लेती।
सीता द्रौपदी है नारी ,
इनकी व्यथा जनता जग सारी  ,
पति परित्यक्ता कठोर वेदना ,
नारी को मुश्किल है झेलना।
पुत्र शोक धन का विक्षोभ ,
सह लेती हँस हँस कर
पुरूष वियोग न सह सकती ,
दुःख को किसी से न कह सकती।



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