"मैं" बिहारी हूँ

           

 मैं  बिहारी हूँ ,यह बात सच  है।  यह उतना  ही सच है की जिस प्रकार भारत भूमि पर जन्म   लेने के लिए देवता लोग भी तरसते रहते है ठीक उसी प्रकार बिहार की पावन भूमि पर जन्म लेने के लिए मैं जन्म जन्मांतर तरसता रहूँगा।  राज्य की ह्रदय पटल को धुलाने  के लिए पवित्र गंगा अपनी अविरल धारा से प्रवाहमान रहती है।
जहाँ कई धर्मों के संस्थापक की जन्म भूमि व ज्ञान भूमि  रही हो।इतिहास इस  का साक्षी है की जैन धर्म के संस्थापक की जन्म भूमि ही नहीं अपितु मोक्ष भूमि  कुंडग्राम वैशाली और पावापुरी नालंदा इसी बिहार में अवस्थित है। बौद्ध धर्म के संस्थापक की ज्ञान भूमि बोधगया इसी बिहार में है। हिन्दू धर्म के मोक्ष प्राप्ति स्थली बिष्णुपद वर्तमान गया शहर का एक हिस्सा है। बिहार व्योम के चमकते सितारे का नाम निम्नवत है बुद्धा ,चाणक्य ,महावीर ,बाल्मीकि ऋषि सुशुपत ,वात्स्यायन ,अशोक ,आर्यभट ,दिनकर ,राजेंद्र बाबू ,वीरकुंवरसिंह ,नागार्जुन ,रामवृक्षाबेनीपुरी ,विद्यापति ,शेरशाहशूरी ,जयप्रकाशनारायण ,गुरुगोविंद्सिंह अरुणकमल आदि।
 ये सभी बिहार विभूति के रूप में जगमगाते  इंदु की तरह प्रकाशित हैं। बौद्ध भिक्षुक का भ्रमण स्थल होने के कारण इस शहर का   नाम बिहार पड़ा। बौद्ध शिक्षा केंद्र नालान्दा विश्वविद्यालय और विक्रमशिलाविश्वविद्यालय ज्ञान का अद्भुत केंद्र था। कुमारगुप्त तथा धर्मपाल राजा ने दोनों विश्वविद्यालय की स्थापना कर शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र बना दिया। आज बिहार के लोगों में बिहारी शब्द अपने आप में हास्य परिहस्य का विषय बना हुआ है ,इसका  बजह चंदेक लोगों का भ्रष्ट आचरण ,पद का दुरुपयोग ,लालच है।

जैसाकि आप जानते हैं गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग कहा जाता है क्या आप इस बिहार के नहीं हैं ,आपको बिहारी कहने पर क्रोध क्यों, आपका सीना गर्व से फुल जाना चहिये की मैं उस बिहार का  हूँ जहाँ के ये सारे विभूति इतिहास का रुपरेखा तैयार करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिए क्या हम अपने आप मे गर्व महसूस न करें।  मगधकाल व् मौर्या काल राजगृह और पाटलीपुत्रा दोनों साम्राज्यों की राजधानी बिहार की धरती रही है।                              
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