जीवन साथी


मैं लडख़ड़ा रहा हूँ ,
जीवन पथ पर
पाने को किसी को सहारा।
इस जालिम दुनिया में ,
पाना चाहता मंजिल ,
पर बना हुआ हूँ बेचारा।
जीवन पथ में मीत मिले तो ,
मंजिल मिल सकता है आगे।
जंजीर भी बांधना चाहे ,
समय भी धोखा दे अगर ,
दोनों मिल तय कर सकते ,
दुर्गम रास्ते का सफर।
दोदो आँसू रो लेंगे दोनों ,
अगर चुभ जाये पावों में कंटक।
आसमा गिर जाये राहों में ,
हो जाये उदधि की मर्यादा भंग ,
काट लेंगें दुःख रूपी निशा को ,
 होकर एक दूसरे के संग। 
रंग जायेंगें एक रंगों में ,
दौड़ेगी एक खून रगों में ,
चाहत होगी एक समान।
 करने को हम दोनों को  जुदा ,
शायद विफल हो जाएगी।
सहर्ष स्वीकार करेंगें ,
जाने को भूतल में ,
जलजला ढक देगी ,
दो चार कंकड़ मिट्टी ,
मानलूँगा मिली जन्म सिद्धि।
Reactions

Post a Comment

0 Comments